Saturday, November 23, 2013

क्या इसलिये? ...

This effort is inspired from my impressions about a very aged husband-wife pair, with whom I shared an Auto ride recently. This couple, withered by hardships, and dwarfed by the ill-wills of age, seemed very much in love, even after all these years...



परछाई तेरी मेरी, मिलीं थी गले आगे बढ़ कर,

क्या इसलिये हम दोनों की आँखों में, चमक कर गयी थी घर?


बातें भी दोनों की, जल्दबाज़ी में घुलती-मिलती, गयी थी संवर,

क्या इसलिये कि उनका खत्म होने का नहीं था डर?


साँसें, घूमती-घामती पतली बेलों सीं, लिपट रही थी एक दूजे पर,

क्या इसलिये वो जा रही थी, हवा में हंसते हुए बिखर?


घबराहट दोनों की घेरा बना ली थी चारों ओर हमारे, हाथ पकड़ कर,

क्या इसलिये कि दबे अरमान अब तेज़ी से, चढ़ने लगे थे शिखर?


तराश रही थी एक दूसरे को, हमारी लड़खड़ाती हुई नज़र,

क्या इसलिये शिल् कला सा सजने लगा था, हमारा आने वाला सफर?


खो गये थे हम, भूल कर विधि की सोची हुई डगर,

क्या इसलिये, हम भांप ना पाए, तेज़ी से पास बढ़ता भंवर?


कुछ ही देर में आया तूफान और मच गया कहर,

क्या इसलिये हमें खलने लगी थी दुनिया, चुभने लगा था शहर?


साथ ही रहे हम, भूल कर बरसता पानी और बादलों की गरजती मेहर,

क्या इसलिये कि उम्मीद थी होगी जल्द ही नई सेहर?


सहलाते गये एक दूसरे कि आँखों को, जो बेहते-बेहते हो गयी थी बंजर,

क्या इसलिये कि विश्वास था बुरा वक़्त जायेगा गुजर?


एक दूजे के सर पर हाथ रखे, बचाते रहे ओलों से अपने सपनों का नगर,

क्या इसलिये धीरे धीरे छटने लगे बादल, और ओझल होता रहा गदर?


झूझ गये सब, एक दूसरे कि बाहों में, ज़ाया ना गया हमारा सबर,

क्या इसलिये हर मौसम में, साथ हमारा रहा अमर?


-पीयूष 'दीवाना' दीवान  


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